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निठल्ले युवक करते है महिलाओं के जिस्म का अपनी नजरों से बलात्कार……
बॉक्स ….. दिन में भी महिलायें सड़कों पर अगर निकलतीं हैं तो निठल्लों की फब्तियां महिलाओं को शर्मशार कर देती है और ये निठल्ले इतने दुष्ट हैं, कि रोज सड़क के किनारे, बीच बाजार में, कालेजों के सामने, कहीं भी किसी भी सार्वजानिक स्थल पर ही औरत के जिस्म का अपनी नजरों से बलात्कार कर देते हैं. ऐसे देश में भावी पीढ़ी का भविष्य क्या होगा…..
कहने को इस देश के मुखिया “मनमोहन” जी है लेकिन असली मुखिया तो “सोनिया गाँधी” ही है. अगर सही में इस देश का मुखिया कोई आदमी होता और इन बहके हुए हालातों में कुछ नहीं करता तो महिलायें निश्चित तौर पर यह कहती कि आदमी है ये, औरत की पीड़ा क्या जाने. पर यहाँ तो पूरी चटक-चौकड़ी ही घालमेल कर रही है और इस शतरंज में रानी की बहुत बड़ी भूमिका है. इस खेल में रानी सबकी लगाम तो थामे है पर कस नहीं रही है क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी इतने सालों पुरानी सरकार ऐसा करने पर कभी भी रास्ते में फिसल सकती है.
लेकिन इन हालातों को देखते हुए तो ये लगता है कि सोनिया गाँधी, सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित, जयललिता, मायावती, रेणुका चौधरी, अम्बिका सोनी, ममता बेनर्जी, राबड़ी देवी और अन्य तमाम महिला कल्याणकारी संस्थाओं में बैठी निर्लज्ज, बेहया, औरतें जो सिर्फ कुर्सी की भूख के लिए अपने कान बंद करके बैठी हैं. आज के समय में इस देश की माँ, बेटियों,और बहिनों को मुजरिमों से ज्यादा इन औरतों के बदलते रूप को लेकर आम-जन के दिलों में एक धारणा बन गई है जिनकी लापरवाही से महिलाओं को इन बलात्कारियों से ज्यादा खतरा है. क्योंकि ये अगर देश की महिलाओ को सुरक्षा देना चाहती और उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर होती तो नये कानून को बनाने की मांग को लेकर समाज में इतनी गरमा-गर्मी न होती. हम सब ये क्यों भूलते जा रहे हैं कि जैसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा को सजा मिलने के बाद भी पैरोल पर छोड़ने का हुकम भी “शीला दीक्षित” ने ही दिया था. और आज केंद्र सरकार आम-जन को कार और बस के काले शीशे और परदे की टॉफी देकर बहकाने में लगी है, सरकार ये भी भली-भांति जानती है कि इस गन्दी मानसिकता के लोग पहले भी ट्रक जैसे खुले वाहन में बेशर्मी और बेख़ौफ़ होकर बलात्कार जैसे अमानवीय बारदाँतों को बखूबी अंजाम दे चुके हैं.
लेकिन क्या सरकार ये नहीं जानती कि अगर कल कोई मुजरिम, जिसे कानून की परवाह और डर नहीं अगर वो किसी ट्रक मे बलात्कार कर देगा तो फिर यह शीला दीक्षित और सोनिया गांधी क्या करेंगी ?
देखा जाये तो दिल्ली में दरिंदगी की शिकार हुई लड़की की मौत पर नेता अभिनेता सभी ने आंसू बहाये और साथ ही “बसपा” सुप्रीमो मायावती सजा की पब्लिसिटी की बात कर रही थीं और ठीक इसी तरह “बीजेपी” नेता कैलाश विजयवर्गीय, “बीजेपी” विधायक बनवारी लाल सिंघल, “कांग्रेस” पार्टी के वरिष्ठट नेता संजय निरुपम, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी, “सीपीएम” नेता अनीसुर रहमान, हर पार्टी के नेता ने इतने संवेदनशील मुद्दे को मजाक बना के रख दिया. इन जैसी मानसिकता वाले महानुभावों ने कभी भी अपनी पार्टी में शामिल बलात्कार के आरोपियों ,दोषियों और महिलाओं पर भद्दे कमेंट करने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही की मांग नहीं उठाई. क्योंकि ये जानते हैं कि इन हालातों के उभरने से ही सरकार पलटती है और जब सरकार पलटती है तो विपक्षी पार्टियों का सिक्का जमता है .
अब देखिये बहाव पानी का हो या विचारों का, ऊपर से नीचे की ओर चलता है. जब इन हुक्मरानों की हरकतों के चलते इन बिगड़ैल नेताओं को सजा मिलेगी, तभी समाज में कानून का डर होगा और तभी हमारा समाज नैतिकता के पाठ को समझेगा. लेकिन दुर्भाग्य कि इसकी मांग किसी ने नहीं की और आगे की जाएगी इसकी भी उम्मीद नहीं दिखाई देती. मीडिया के कुछ इमानदार पत्रकारों ने भी इसे एक कोने में डाल रखा है और कुछ पुलिस प्रशासन ने भी सरकार के कुकर्मों को दबाने का जिम्मा ले रखा है तो फिर कैसे बदलेगी मानसिकता ?
गैंगरेप के आरोपियों को सजा तो होनी ही चाहिए , इसलिए नहीं कि देश उद्वेलित है, बल्कि इसलिए कि सत्ता साकेत की सियासी जमात लोगों की नाराजगी को ठंडा करना चाहती है. और अब ये भी पक्का है कि अब मौत की सजा ठहर-ठहर कर पूरी तरह सोनियां की मेहरबानी पर टिकी रहेगी.
सरकार के विरुद्द आम–जनता के गुस्से का उबाल आना स्वाभाविक है क्योंकि जनता यह साबित करना चाहती है कि वह वास्तव में दुखी है. क्या यह सच नहीं है कि मायावती के राज में उनके विधायकों पर रेप के कई आरोप लगे ?
और बिहार में भाजपा विधायक की एक महिला ने केवल इसलिए हत्या कर दी थी कि विधायक ने न केवल उसका शोषण किया, बल्कि उसकी बेटी पर भी उसकी नजर थी. और सबसे मजे की बात तो ये देखिए कि वह महिला यह भी साबित नहीं कर पाई की वह निर्दोष है.
देखा जाए तो “कांग्रेस” के युवा कार्यकर्ता, कहीं “सपा” कहीं “बसपा” कहीं “भाजपा” सब अपने घिनौने कृत्यों के द्वारा देश का नाम रोशन कर रहे हैं , केंद्र की सरकार भी कम नही है वो भी उन्हें बचाने के लिए जी जान से जुटी रहती है.
लेकिन लानत है ऐसी सोनिया गाँधी और शीला दीक्षित की जी हज़ूरी करने वाले पुलिस प्रशासन की. सच तो ये है कि इस देश की सरकार और पुलिस दोनों को कोढ़ हो चुका है और दोनो एक दूसरे की सहूलियतों को देख रहे हैं. यानि कि दोनों के पास एक दूसरे के पाप छुपाने के अलावा और कोई काम नही है, ये तो उन अंग्रेजों से भी गए गुजरे हैं जो कम से कम इस देश से जाते-जाते कुछ ऐतिहासिक चीजे बना कर तो गये, लेकिन इस सरकार ने तो पूरी तरह से देश बेचने के लिये अपनी से कमर कस ली है .
इस बेशर्म सरकार और राजनैतिक पार्टियों को महिलाओं की इज्जत की कीमत तो मालूम ही नही है, अगर मालुम होती तो आज देश के हालत कुछ और कहानी बयाँ करते.
बहरहाल जो भी हो बलात्कारियों को राजनीतिक सौराक्षण मिला है सरकार निठल्ली बैठी है, कानून खामोश है, कॉर्पोरेट्स मजे कर रहै है, अमीर ऐय्याशी कर रहे हैं, चारों तरफ भ्रष्टाचार फैला है, गरीब और गरीब हो गया है, घरों तक में महिलायें सुरक्षित नहीं है, देर रात बाहर जाना तो दूर की बात है दिन में भी महिलायें सड़कों पर अगर निकलतीं हैं तो निठल्लों की फब्तियां महिलाओं को शर्मशार कर देती है और ये निठल्ले इतने दुष्ट हैं , कि रोज सड़क के किनारे , बीच बाजार में, कालेजों के सामने, कहीं भी किसी भी सार्वजानिक स्थल पर ही औरत के जिस्म का अपनी नजरों से बलात्कार कर देते हैं . ऐसे देश में भावी पीढ़ी का भविष्य क्या होगा. तो फिर कहाँ जाएंये बेचारी महिलायें .
और रही बात “चीफ मिनिस्टर” शीला दीक्षित और देश की सर्वे-सर्वा सोनिया गाँधी की बात तो भई उनके आगे पीछे कमांडो काफी है उनकी सुरक्षा के लिए और उन्हें कभी सड़क पर पैदल तो चलना नहीं पड़ता जो इन परिस्तिथियों को झेला हो, तो शीला दीक्षित और सोनिया गाँधी जी एक बार आप आम महिला बनकर देखिये कितनी मुश्किलों से गुजरना पड़ता है महिलाओं को, और एक बात तो सीधी है की हर महिला अगर “सीएम” की कुर्सी पर बैठ जायेगी तो बाकी सारे कार्य कौन करेगा, इसलिए ये भी मुमकिन नहीं है ….
मुख्य मंत्री होने के नाते शीला दीक्षित जी आपकी भी कुछ नैतिक जिम्मेदारी जन-सुरक्षा के प्रति बनती है, अगर आप इसमें विफल होंगी तो आपको ये कुर्सी . वास्तव में छोड़ देनी चाहिए .
साथ ही साथ सोनिया गांधी जी आपका भी कुछ कर्तव्य बनता है अपने पति के घर की सुरक्षा के प्रति ईमानदार होना. आप दूसरे देश से इस देश में आईं, इस देश की जनता ने आपको इस देश की “बहू” माना और एक “बेटी” की तरह आपको इज्जत और सम्मान दिया. और जनता ने आपके हांथों में हुकूमत सौंप दी ये सोचकर कि आप एक जिम्मेदार खानदान की बहू हैं और अपना फर्ज बखूबी निभाएंगी , अब देखिये सोनिया जी इस देश की जनता ने अपना फर्ज तो बखूबी निभाया पर आप अपनी जिम्मेदारी भूल गई ….क्या आपकी कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती. यहाँ अंधेरगर्दी मची हुई है और आप हैं कि अभी इन हालातों को हलके में ले रहीं हैं. इस तरह के हालातों को देखते हुए देश के हाथ धोखा ही लगने वाला है यह पूर्वाग्रह नहीं हकीकत है.
मेरे हिसाब से सरकार को कानून में संशोधन करना चाहिये…क्योंकि मुजरिम का साथ देने वाला भी उतना ही गुनाहगार होता है जितना कि मुजरिम. जान-बूझ कर गुनाह को दरकिनार करने वाले लोगों पर भी यही कानून लागू होना चाहिये.
सुनीता दोहरे …लखनऊ ….
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