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सरकार को कटघरे में खड़ा किया राहुल ने……

sach ka aaina
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सरकार को कटघरे में खड़ा किया राहुल ने……
Box……. तो राहुल गाँधी जी मेरी भी एक सलाह है आपके लिए कि “भारतीय परम्परा में नेता वो नहीं होता जो लोगों का नेतृत्व करे, बल्कि नेता वो होता है जो यह जानता है कि खुद का नेतृत्व कैसे किया जाये”………….
रामलीला मैदान में आयोजित कांग्रेस की महारैली को संबोधित करते हुए “कांग्रेस” के महासचिव राहुल गांधी ने बड़ा ही दिलचस्प भाषण दिया उन्होंने कहा कि आज हमारी सबसे बड़ी समस्या हमारा राजनैतिक सिस्टम है. आम आदमी और कमजोर आदमी के लिए ये सिस्टम बंद है. इसी सिस्टम की वजह से देश तरक्की नहीं कर पा रहा है. सिस्टम में आम आदमी की भागीदारी न होने से देश विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ रहा है. आम आदमी सपने देखता है और राजनैतिक सिस्टम उसे ठोकर मारकर गिरा देता है. मुझे ये अहसास पिछले आठ सालों में राजनीतिक तौर पर सक्रिय रहने के बाद हुआ है मैं आपको अपने दिल की बात बताना चाहता हूं इन 8 सालों के दौरान हमने अंदर से राजनैतिक सिस्टम को देखा, मजदूरों, किसानों और युवाओं के पास गया. थोड़ी सी समझ सिस्टम के बारे में मुझे भी आई है.
राहुल ने ये भी कहा कि भ्रष्टाचार की बात जरूर उठाई गई है लेकिन किसी विपक्ष के नेता ने ये कहा हो कि भैया सिस्टम को बदलना है. मुझे तो नहीं सुनाई दिया. आम आदमी ठोकर खाता रहता है. सच्ची बात ये है जब तक आम नेता राजनीति सिस्टम के भीतर नहीं आएगा, देश नहीं बदल सकता. सिर्फ विरोध करने से कुछ नहीं होता. रास्ता दिखाने से होता है. रास्ता, मनमोहन सिंह और सोनिया जी ने दिखाया है…….
“कांग्रेस महासचिव” अपने विचारों को मंच पर जनता के सामने खुलकर खुद बयां कर रहे थे जिसे सुनकर बड़ा ही आघात लगा. क्या राहुल गाँधी अभी तक परिपक्व नहीं हुये हैं या फिर कोई राजनीतिक चाल की शरुआत है ……..
देखा जाये तो राहुल का भाषण अपनी ही सरकार और पार्टी को कटघरे में खड़ा करता नजर आया. येसाफतौर पर दिखाई दे रहा है कि वो राहुल गांधी जिन्हें कांग्रेस 2014 में भावी प्रधानमंत्री के तौर पर देख रही है और जो जल्द ही आधिकारिक तौर पर कांग्रेस में नंबर दो की भूमिका निभाएंगे, वोविपक्ष पर सवाल उठा रहे है.
राहुल गांधी ये भी मान रहे हैं कि खुद उनकी पार्टी में आम कार्यकर्ताओं के लिए दरवाजे बंद हैं और उन्हें खोले बगैर देश की तस्वीर नहीं बदल सकती. लेकिन सवाल ये है कि जिस कांग्रेस पार्टी ने देश की सत्ता पर सबसे ज्यादा समय तक राज किया है वही पार्टी जब इतने सालों में राजनीतिक सिस्टम नहीं बदल पाई तो अब भला राहुल कैसे इस सिस्टम को अचानक बदल देंगे.
बहरहाल जो भी हो मुझे एक बात समझ नहीं आती ये नेता जनता को नासमझ क्यों समझ लेते हैं. क्यों जनता की भावनाओं को दरकिनार कर अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं.
सही मायने में देखा जाये तो – राहुल की पार्टी “कांग्रेस” की सरकार कई सालों से है तो फिर सिस्टम बदलने के लिए अभी तक क्यों कुछ नहीं किया गया ? कांग्रेस को सिस्टम बदलने से किसने रोका ?तो फिर कांग्रेस के दरवाजे आम आदमी के लिए क्यों बंद हैं ? और आजादी के बाद से देश में सबसे ज्यादा वक्त “कांग्रेस” के शासन का रहा है तो सिस्टम बदलने से “कांग्रेस” को किसने रोका ? अब क्या “कांग्रेस” के “युवराज” अरविंद केजरीवाल बनना चाहते हैं ? और “कांग्रेस” को बदलने के लिए राहुल गांधी को कितना वक्त चाहिए ? ये सब सवाल “कांग्रेस” की कारगुजारियों पर एक सवालिया निशान उठाते है. समझने की बात तो ये है कि राहुल गांधी सिस्टम बदलने की जो बात कह रहे हैं वही बात पिछले दो सालों से टीम केजरीवाल भी कहती आ रही है.

भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी “कांग्रेस” के सामने कई ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब देने से पहले खुद पार्टी की नीयत पर सवाल खड़े हो जाते हैं. लेकिन मुश्किल ये कि सिस्टम बदलने का सपना दिखाने वाले राहुल इस सिस्टम में हर तरफ फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने की ईमानदार कोशिश करते नहीं दिखते. क्योंकि राहुल गाँधी 42 साल के होने के बावजूद भी अभी तक राजनीति के दांव-पेच नहीं सीख पाए हैं. बड़े ही सामान्य से अंग्रेज़ी बोलने वाले किसी भी अन्य उच्च- वर्गीय व्यक्ति की तरह ही है जिसका भारत के ज़मीनी हालात से कोई ख़ास जुड़ाव नहीं है.
तो राहुल गाँधी जी मेरी भी एक सलाह है आपके लिए कि “भारतीय परम्परा में नेता वो नहीं होता जो लोगों का नेतृत्व करे, बल्कि नेता वो होता है जो यह जानता है कि खुद का नेतृत्व कैसे किया जाये”
नेता बनने के लिये सीखें, अपने विचारों का प्रयोग करें और अपनी सोच से चुनौती दें. इंसानियत की मिसाल के तौर पर जनता के दिलों में कायम रहकर उन करोड़ों भारतीयों के कष्टों को अपना कष्ट मानकर एक ऐसी मिसाल दें जिससे लगे कि जो भारत की आत्मा का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं उन्हें हम अपना युवराज दिल से माने……
सच तो ये है कि आज की राजनीति में सारे नेता वही बोलते हैं “जो लोग सुनना चाहते हैं या जो जनता को झूठे-लुभावने वादों की सौगात देने का वादा करते हैं और जीतने के बाद मुकर जाते हैं” इसे नेतृत्व नहीं कहा जा सकता, और ऐसा करने वाले नेता नहीं, बल्कि अनुयायी होते है. राहुल जी नेतृत्व करना सीखिए, खुद चुनौती दीजिये. जनता के साथ रिश्ता बनाईये. उनके दर्द को बाँटना सीखिए. अपने विरोधियों को भी सुनने के साथ-साथ उनका आदर कीजिये क्योंकि वे आपको रास्ता दिखाते है. सत्य को पहचान कर सत्य के लिए संघर्ष करिये.
आप एक बात तो अच्छे से समझ लीजिये कि भारतीय परम्परा में नेतृत्व का मतलब पाना नहीं है बल्कि देना होता है दूसरों का नेतृत्व करना नहीं बल्कि स्वयं का नेतृत्व करना है. तो राहुल गाँधी जी यानि कि “युवराज” अभी भी वक्त है संभल जाइए …………

सुनीता दोहरे ….
लखनऊ ….

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