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समाजवादी पार्टी की छवि बदलने में नाकाम अखिलेश यादव….

sach ka aaina
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समाजवादी पार्टी की छवि बदलने में नाकाम अखिलेश यादव….
बॉक्स…. सत्ता के मद में चूर सपाइयों के कारनामों की वजह से अगर यही हाल रहा तो “सपा” का चरित्र भी ओछी राजनीति का भेट चढ़ जायेगा.और इन हालातों में भी “सपा” और “बसपा” दोनों एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से नहीं चूकते…………
उत्तर प्रदेश में “सपा” सरकार के युवराज को ताज पहने काफी समय होने के बाद भी अभी तक प्रशासनिक काम-काज का वही पुराना ढर्रा चल रहा है. अभी तक न तो समाजवाद की अवधारणा ही यथार्थ के धरातल पर उतर पाई है और न ही युवा मुख्यमंत्री की ऊर्जा का लाभ प्रदेश को मिलता दिखाई दे रहा है. प्रदेश में अपराधों की बाढ़ सी आ गई है, उस पर भी सरकार के मंत्रियों का यह तुर्रा की अभी तो सरकार बनी है इसे थोडा समय देना चाहिए.
कानून व्यवस्था व अपराध नियंत्रण के मामले में मुख्यमंत्री की लाचारी इस बात से ही झलकती है कि अखिलेश यादव का ये कहना कि “क्या मैं खुद वर्दी पहन लूं ?” इससे दुर्भाग्यपूर्ण बात उत्तर-प्रदेश के लिए क्या होगी ? देखा जाये तो सूबे की सरकार के 48 में 26 मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज है. इन हालातों में जनता कैसे सुरक्षित रह सकती है. हत्याकांड, लूट, बलात्कार जैसी कई बड़ी-बड़ी वारदातें कानून व्यवस्था के बेपटरी होने की बानगी हैं. सूबे की सरकार के इन दस महीनों में विकास कार्य तो नहीं बढ़े हैं, लेकिन गुंडागर्दी अपनी चरम सीमा पर है. विकास के नाम पर नहरों में पानी आता नहीं, सरकारी नलकूप बंद पड़े हैं, धान खरीद हो नहीं रही, अधिकारी किसानों का दोहन कर रहे हैं और महिलाएं असुरक्षित हैं, स्कूलों में शिक्षा अपंग है, राज्य की “एसपी” सरकार का पिछले १० महीने का शासन हर स्तर पर बहुत ही खस्ताहाल, दुखदायी एवं चिंताजनक रहा है. सच तो ये है कि ४८ में से २६ यानी ५४ प्रतिशत मंत्रियों के आपराधिक रेकॉर्ड हैं. प्रदेश में अपराध नियंत्रण एवं कानून के मामले में “एसपी” सरकार अपने पुराने रेकॉर्ड तोड़ते हुए इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि लोगों का कानून और सरकार से विश्वास उठ गया है. सरकार, प्रशासन और कानून-व्यवस्था लगभग ध्वस्त हो चुकी है. पार्टी में गुंडे, बदमाश और भ्रष्ट नेताओं का बोलबाला है ऐसे में प्रदेश सरकार से उम्मीद भी क्या की जा सकती है ? “सपा” से जुड़े लोग ही कानून व्यवस्था में सबसे बड़ी बाधा हैं ये अपराधी कोर्ई और नहीं बल्कि कई घटनाओं में लिप्त “सपा” कार्यकर्ता व नेता हैं. “सपा” के शासनकाल में पुलिस “सपा” के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हाथ कैसे डाले. क्योंकि अपराधी प्रवृत्ति के सपा नेताओं को “सपा” सरकार के कुछ मंत्रियों का ही संरक्षण प्राप्त है.ये वो ही मंत्री हैं जो अखिलेश को मुख्यमंत्री बनते नहीं देखना चाहते थे. इन स्थितियों को देखते हुये ऐसी स्थिति को अराजक स्थिति कहना गलत नहीं होगा. सपा के लिए आगे चलकर ये बहुत ही गम्भीर परिणाम दे सकते हैं. प्रदेश सरकार के मंत्रिमण्डल में इतने दागी मंत्रियों के रहते सपा राज में जनता कैसे सुरक्षित रह सकती है ? अब अखिलेश प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारियों के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि आखिर वह मंत्रिमण्डल में शामिल बड़े नेताओं की बात मानने से इन्कार कैसे करें. अपराधी प्रवृत्ति के सपाइयों को मिल रहे संरक्षण के कारण प्रशासनिक अधिकारियों को अपने हाथ बंधे नजर आते हैं.
और इसलिए अखिलेश द्वारा बार-बार सख्ती से आदेश देने के बाद भी कानून-व्यवस्था काबू में नहीं है. सत्ता के मद में चूर सपाइयों के कारनामों की वजह से अगर यही हाल रहा तो “सपा” का चरित्र भी ओछी राजनीति का भेट चढ़ जायेगा. सपा राज में महिलाएं व बच्चियां सबसे ज्यादा यौन हिंसा की शिकार हो रहीं हैं. माफिया और गुंडे लूट मचाए रहते हैं.
देखा जाये तो “सपा” और “बसपा” दोनों एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से नहीं चूकते.
अभी हाल ही की बात है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश की मुख्य विपक्षी “बहुजन समाज पार्टी” की नेता मायावती का नाम लिए बगैर कहा कि एक नेता प्रधानमंत्री से मिलने गईं और वहां से निकलते ही अचानक उनको ध्यान आ गया कि उत्तर-प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब है. अखिलेश ने व्यंग्य के अंदाज में कहा कि…. पता नहीं प्रधानमंत्री के खाने में ऐसा क्या था, कि बाहर निकल कर अचानक उन्हें कानून-व्यवस्था का ख्याल आ गया. “बसपा” सरकार चाहे जितनी पोथी के पन्ने पढ़ लें, जागरूक जनता धोखे में आने वाली नहीं है. रोज-रोज क्राइम प्रदेश बताकर वह उत्तर-प्रदेश की बदनामी कर रही है और 20 करोड़ जनता का अपमान कर रही हैं. मायावती के शासनकाल में उनके आधा दर्जन मंत्री-विधायक हत्या, दुष्कर्म तथा अपहरण के मामलों में जेल की हवा खा रहे थे………
और वहीँ “बसपा” भी “सपा” पर कटाक्ष करने के कोई भी वार खाली नहीं जाने देती. विगत दिनों में हैरान करने वाली बात है कि आमतौर पर मीडिया से बात करने से बचने वाली मायावती का प्रेस कांफ्रेंस करके अखिलेश यादव को एक लाचार मुख्यमंत्री कहना और ये कहना कि वे राज्य के हालात नहीं संभाल सकते हैं. राज्य में कानून-व्यवस्था पूरी तरह से खत्म हो गई है और “समाजवादी पार्टी” की गुंडों से भरी सरकार अपने ही पुराने रिकार्ड तोड़ रही है. प्रदेश में अराजकता की स्थिति है. मायावती का इस तरह से आरोप लगाना एक सवालिया निशान खड़े करता है. “बसपा” प्रमुख मायावती के तेवर नये नहीं है. उनका ये कहना कि राज्य सरकार के खिलाफ उनकी पार्टी का अभियान तेज होगा और केंद्र को भी वे नहीं बख्शने वाली हैं. बहरहाल जो भी हो “कांग्रेस” के जो नेता इस मुगालते में थे कि “सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति, जनजाति के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दिलाने का बिल पेश कर देने से मायावती खुश हो जाएंगी” उन्हें भी निराशा होगी…….मायावती ने आरक्षण के मसले पर केंद्र सरकार के रवैए पर भी सवाल उठाए. और सब्सिडी के नकद हस्तांतरण का भी विरोध किया. दिल्ली दुष्कर्म मामले में मायावती ने कहा कि केवल घटना की निंदा करने और शोक जताने से महिलओं के प्रति उत्पीड़न नहीं रुकेगा. बल्कि इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह लोगों से सलाह मशविरा कर कड़े कानून बनाए.
“बसपा” प्रमुख का ये कहना कि सरकार सर्वसमाज के हितों की रक्षा करने के मामले में भी बुरी तरह नाकाम रही है और “सपा” ने चुनावी घोषणापत्र में प्रदेश के सभी मुसलमानों को 18 फीसदी आरक्षण देने की बात कही थी लेकिन अब इस वादे से बचने के लिए इसकी पूरी जिम्मेदारी केंद्र पर डालने की तैयारी की जा रही है……
देखा जाये तो केंद्र सरकार की नीतियां देश के प्रति निराशाजनक रहीं हैं. जनहित के मुद्दों को सुलझाने के बजाय सरकार ने गैर जरूरी मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देकर आम जनता के साथ अन्याय किया है और इन्हीं कारणों से देश में प्रमोशन में आरक्षण विधेयक लोकसभा में पारित नहीं हो सका. इसके अलावा भूमि सुधार विधेयक, लोकपाल विधेयक भी बेबजह लटक गए, जिसके तहत देश की जनता को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. साथ ही केंद्र की गलत आर्थिक नीतियों के कारण पूरे देश, सर्वसमाज में बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई बढ़ी है. “सपा” के सत्ता में आने के दिन से ही पार्टी के कार्यकर्ता, विधायक और मंत्री लगातार कानून-व्यवस्था को ठेंगा दिखा रहे हैं. कानून-व्यवस्था दुरुस्त करना मुख्यमंत्री अखिलेश के लिए चुनौती बन गया है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विधानसभा चुनाव में “सपा” के चुनाव प्रचार की कमान संभालने वाले अखिलेश यादव पर जनता ने भरोसा करके “सपा” को जिताया था. लेकिन “सपा” नेताओं की आए दिन सामने आ रही अराजक गतिविधियों पर सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश के नरम रवैये को लेकर लोगों में अत्यधिक निराशा है. इससे ये साफ़ झलकता है कि “समाजवादी पार्टी” की छवि बदलने में नाकाम हैं अखिलेश यादव.
आमतौर पर ये समझा जा रहा था कि राजनीति के घाघ खिलाड़ी “सपा” सुप्रीमो मुलायम के अनुभव का अखिलेश को लाभ मिलेगा मगर हुआ इसका उल्टा. सुप्रीमो को दिल्ली रास आई और युवराज पर आजम खान व रामगोपाल यादव हावी हो गए. अतः मंत्रियों से लेकर “सपा” के वर्तमान कर्णधारों तक की विफलता का ठीकरा अखिलेश के ही सर पर फूट गया. अब अखिलेश लाख सफाई देते फिरें कि स्थितियां सामान्य होने में अभी वक़्त लगेगा किन्तु वे तय तो करें कि इन स्थितयों को ठीक कौन करेगा ? क्या अखिलेश को अपनी छाया से मुक्ति देगी मुलायम सिंह, आजम खान और रामगोपाल यादव की तिगड़ी या फिर वे अपनी ऊर्जा का सही मायनों में दोहन कर सूबे के विकास के प्रति गंभीर होंगे.
मुलायम कितने भी अनुभवी हो पर राजनीति की सीमा में वे अपनी स्मरणशक्ति खोते जा रहे हैं. यहाँ पर एक बात और स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि “सपा” चाह कर भी कांग्रेस का सियासी विरोध नहीं कर सकती क्योंकि मुलायम की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को परवाज “कांग्रेस” ही चढ़ा सकती है.
अखिलेश को उत्तर प्रदेश की जनता ने एक सुनहरा मौका दिया है.और जनता ये उम्मीद करती है कि वे पूरवर्ती शासन के पाप धोते हुए सूबे को विकास पथ पर अग्रसर करें और ऐसा न कर पाने के एवज में अखिलेश पर दोहरी मार तय है जिसका परिणाम २०१४ में दिख ही जायेगा और भावी विधानसभा चुनावों में भी उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है. यह वक़्त निश्चित रूप से अखिलेश के लिए अग्निपरीक्षा के साथ-साथ कठोर परिश्रम से गुजरना है जिससे गुजर कर ही वे कोई मिसाल कायम कर सकते हैं नहीं तो उनकी गिनती भी उन्हीं नेता पुत्रों में होगी जो राजनीति में पीढ़ी दर पीढ़ी पुश्तैनी व्यवसाय के ज़रिये उतारे जाते हैं. अगर ऐसा हुआ तो राजनीति में व्याप्त इस सोच को भी बहुत गहरा आघात लगेगा कि युवा नेता ही राजनीति में बदलाव ला सकते हैं.
“सपा” जब सत्ता में आई तो अपने इस वायदे के साथ कि पुलिस प्रशासन दोषी के साथ सख्त कार्यवाही करेगा और निर्दोषी की सुनते हुये ऐसी स्थिति पैदा की जायेगी कि समाज के किसी भले आदमी की तरफ कोई गुंडा आंख उठाकर न देख सके. मगर न तो पुलिस ने निर्दोषी की सुनी और न ही गुंडों में सरकार का खौफ. स्थिति यह है कि सरकार की उम्र अभी १० महीने की हुई है और अपराधियों की पौ-बाराह होने के साथ-साथ प्रदेश के करीब आधा दर्जन से ऊपर शहर साम्प्रदायिक दंगों का कहर झेल चुके हैं.
सच तो ये है कि राज चाहें “सपा” का हो या “बसपा” का एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से कुछ न होगा जब तक कानून व्यवस्था जैसे महत्वपूर्ण मामले में सरकार सख्ती से काम नहीं लेगी इन पर नियंत्रण सम्भव नहीं है. जरूरत है कि सम्बंधित जिले के प्रशासिनक अधिकारियों के खिलाफ निलम्बन से भी सख्त कारवाई हो जिससे उनके मन में डर पैदा हो और वे अपना कर्तव्य जिम्मेदारी से निभाएं. अपहरण या गुमशुदगी के मामले में ज़िले के उच्चाधिकारियों द्वारा मॉनिटरिंग की व्यवस्था की जाए. इसके साथ ही असामाजिक तत्वों के विरूद्ध पुलिस सख्ती बरतते हुये क़ानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार लाए. चरित्रवान व ईमानदार पुलिस अधिकारी ही थानों पर तैनात किये जाएँ. जेल से चल रहे संगठित गिरोहों को ख़त्म किया जाए जिससे प्रदेश में अपराध पर अंकुश लग सके और अपराधों पर रोक लगाकर प्रदेश में औद्योगिक निवेश के लिए अच्छा वातावरण बनाया जाए. बड़े अपराधियों के ख़िला़फ कार्यवाही कर उन्हें जेल में रखने की हर संभव कोशिश की जाए……
सुनीता दोहरे…
लखनऊ ..

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