Menu
blogid : 12009 postid : 64

बिजली व्यवस्था भारी है अखिलेश व्यस्तता पर…..

sach ka aaina
sach ka aaina
  • 221 Posts
  • 935 Comments

बिजली व्यवस्था भारी है अखिलेश व्यस्तता पर…..

Box………. सच तो ये है कि देश का खजाना चुनावी घोषणाओं की पूर्ति में खाली हो जाता है तो फिर बिजली जैसी रोजमर्रा की आवश्यकता पूर्ति कैसे और क्यों करेंगे ये भ्रष्ट नेता………

चुनावी घोषणा पत्र में बिजली संकट दूर करने का वादा करने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) को सत्ता में आए नौ महीनों से ऊपर हो चुके हैं, लेकिन बिजली व्यवस्था जस की तस बनी हुई है. २०१४ के लोकसभा चुनाव सर पर है और ऐसे में बिजली व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खुद अपने हाथों में कमान लेने के बावजूद अभी तक हालात जस के तस हैं. गाँव तो दूर शहरों में भी निर्धारित अवधि तक बिजली आपूर्ति नहीं हो पा रही है. वास्तव में प्रदेश में बिजली की व्यवस्था बड़ी ही खराब है बिजली को लेकर विपक्षी दल ही हमलावर नहीं है बल्कि पार्टी के भीतर भी सुगबुगाहट होने लगी कि बिजली के मुद्दे पर सरकार कुछ नहीं कर पा रही. सत्ता में आने के बाद बिजली व्यवस्था दुरुस्त करने का वादा करने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश हर हाल में आगामी २०१४ के लोकसभा चुनाव से पहले बिजली व्यवस्था को पटरी पर लाना चाहते हैं. पर उनकी हर कोशिश नाकामी की ओर बढ़ रही है कारण कि
राज्य सरकारों ने बीते करीब 15 सालों में अपने बिजली घर लगाने के बजाय विभिन्न औद्योगिक घरानों को बिजलीघर लगाने की अनुमित दी है इसका परिणाम यह हुआ कि जिन्हें पांच साल में बिजली उत्पादन शुरू करना था, वे पंद्रह साल में भी नहीं शुरू कर पाए. जैसे कि मुलायम सिंह सरकार ने साल 2005 में रिलांयस एनर्जी को 3740 मेगावॉट क्षमता का बिजलीघर लगाने के लिए नोएडा के दादरी में कई एकड़ जमीन दी थी लेकिन यह बिजली घर आज तक नहीं बन पाया. मेरा मानना है कि अगर सरकार पब्लिक सेक्टर को बिजली घर लगाने के लिए खास तवज्जो दे तो उत्तर-प्रदेश बिजली के क्षेत्र में 2017 तक आत्मनिर्भर हो सकता है. सही मायने में अगर सरकार सच में आम आदमी की दिक्कत को नजर में रखती है तो सरकार अपनी नीतियां गरीब और आम आदमी का ख्याल रखते हुये बनाए.
हमारे राजनीतिज्ञ चुनावी दौर के दौरान जो घोषणायें करते हैं तो समाज के कुछ वर्ग को राहत मिलती है और कुछ को यूँ लगता है कि इन नेताओं ने जीवन और भी कड़े संघर्ष में डाल दिया है. सच तो ये है कि देश का खजाना चुनावी घोषणाओं की पूर्ति में खाली हो जाता है तो फिर बिजली जैसी रोजमर्रा की आवश्यकता पूर्ति कैसे और क्यों करेंगे ये भ्रष्ट नेता. लेकिन अगर सरकार थोड़ा दिमाग लगाये और सिर्फ अपना पेट ना भरे, जनता की मुसीबतों के बारे में सोचे तो स्थिती बहुत हद तक सुधर सकती है.
मेरा मानना है कि शहर की सड़कों और गलियों में स्ट्रीट लाइटें दिन में भी जलती रहती हैं वो दिन में कतई भी ना जलने पायें इस बिजली की बेकारी को बचाने के लिए यदि कुछ लोगों की और भर्ती करानी पड़े तो करायी जाए.
बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों में फैक्ट्री लगते ही सबसे पहले बिजली की चोरी के पुख्ता प्रबंध कर लिये जाते है. और इन फैक्ट्रियों पर बिजली विभाग का करोड़ों रूपया उधार रहता है. राज्य सरकार को चाहिए कि बिजली के बिलों के बाबत लम्बित मामले जो न्यायालयों में हैं एक शासनादेश जारी कर कहें कि समय सीमा के अंतर्गत विशेष छूट पर अपने बिल का भुगतान करें ….सरकार के इस शासनादेश से एक मोटी रकम प्रदेश के खजाने में जमा हो सकती है.
पूरे प्रदेश में बिजली की चोरी को रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाये जाएं.
एक विकल्प के तहत साधन संपन्न परिवारों को जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है अगले दस साल का बिजली का बिल एक साथ जमा करने पर कुछ छूट दी जाए साथ ही साथ अभी की बिजली की दरों के हिसाब से आगामी पांच साल का बिल लिया जाए. जिससे इस धन से बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए काम किया जाए. प्रदेश की नदियों के जल को संचित करें, बांध बनाये जाएं उन बांधों से नहरों के द्वारा कृषि योग्य भूमि की सिंचाई का प्रबंध कराया जाए, गॉंवों के बड़े-बड़े पोखरों को गहरा खुदवा कर वर्षा जल को संचित करके खेती योग्य भूमि की सिचाई के लिए व्यवस्था की जाए इससे भी बिजली की बचत होगी.
सुझाव तो बहुत है पर अखिलेश जी अगर इन्ही सुझावों के तहत चल कर देख लें तो नतीजा बेशक देश के हित में होगा.
सपा का जो ‘माइनस प्वाइंट’ रहा है, वह यह है कि सपा की सरकार जब बनती है तो अपराध बढ़ जाते हैं. सपा की कमान अखिलेश यादव के हाथ में आने के बाद आमजन को ये लगा था कि अखिलेश अपनी चुनावी रणनीति और सूझ-बूझ से इस धारणा को बदल देंगे.
अब देखना ये है कि अखिलेश जनता के इस भरोसे को कहाँ तक कायम रख पाते हैं. कानून-व्यवस्था और बिजली व्यवस्था को प्रदेश में कायम रख पाने से ही किसी राज्य के विकास का मार्ग प्रशस्त होता है. और पिछले नौ महीनों से दोनों को दुरुस्त करने की चुनौती अखिलेश यादव सरकार के सामने अभी भी बरकरार है. हालांकि खुद उत्तर-प्रदेश सरकार का नजरिया है कि ये वक्ती संकट हैं, जिस पर जल्दी ही काबू पा लिया जाएगा. पर अभी ऐसा फिलहाल तो नजर नहीं आ रहा है. जब राज्य के ज्यादातर हिस्सों में बिजली की किल्लत से जनता जूझ रही है. तब कुछ जिलों में बिजली विभाग इतना मेहरबान क्यों है ? इटावा, मैनपुरी, कन्नौज और रामपुर में पूरे 24 घण्रटे बिजली देने का क्या औचित्य है. अखिलेश यादव, शिवपाल सिंह यादव, मुलायम सिंह यादव, डिम्पल यादव के निर्वाचन क्षेत्रों में 24 घण्टे बिजली रहती है. जबकि प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में बिजली की मारामारी अब भी है. इससे हमें ये जाहिर होता है. कि प्रदेश के बाकी सब लोगों की इन्हे परवाह ही नहीं है. जनता के बीच यही संदेश जा रहा है कि ये इनके क्षेत्र हैं और समाजवादी पार्टी के बड़े नेता इसका प्रतिनिधित्व करते है. ये एक सत्तारूढ़ दल के लिये उचित नहीं है. वर्तमान सरकार को एक नयी सोच की जरूरत है. बिजली को लेकर सरकार की नाकामी पर विपक्षी दल हमलावर बने हुए हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती जनता की बिजली की मांग को पूरा करने की है. बिजली को लेकर सिर्फ बयानबाजी और पूर्ववर्ती बीएसपी सरकार पर दोषारोपण करने की नहीं. बल्कि जमीनी स्तर पर गंभीरता से प्रयास करने की है.
ये सच है कि प्रदेश में बिजली की आपूर्ति और खपत में जरूरत से ज्यादा अन्तर है. इस बात पर कोई संदेह नहीं कि प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बेहद युवा एंव अनुभवहीन है. इन सब बातों के बावजूद भी वो उत्तर-प्रदेश को एक नयी दिशा और प्रगति की ओर ले जाने के लिये प्रयासरत हैं. अभी तक सपा सरकार ने बिजली को लेकर जो भी व्यवस्था की है उसके परिणाम निराशाजनक ही रहे हैं. ऐसे में बिजली व्यवस्था पटरी पर नहीं आई तो अखिलेश सरकार को २०१४ के चुनाव में इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है…..सुनीता दोहरे …लखनऊ …

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply