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महिला पुरुष की प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि पूरक है.

sach ka aaina
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Heading…. महिला पुरुष की प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि पूरक है.
Sab heading …. ये है सारस्वत सत्य कि स्त्री की सच्ची हार ही स्त्री की सच्ची चिरस्थायी जीत.
Box….. महिला-पुरुष समानता हर नारी चाहती है और मैं भी चाहती हूं लेकिन ऐसी समानता नहीं कि जहां घर बनने से पहले उजड़ जाता हो. मैं प्रकृति की नहीं सिर्फ नारी के अधिकारों की समानता चाहती हूँ. सही मायने में महिला-पुरुष की समानता तब होगी जब महिलाओं के जीवन में व्याप्त विसंगतियों को दूर किया जाएगा.
पुरुष समाज ही दोषी क्यों …….
जब भी हम महिलाओं के पिछडेपन के लिए दोषीजन की बात करते हैं तो बेचारा पुरुष समाज हमेशा ही कटघरे में खड़ा नजर आता है. हालांकि ऐसा बिलकुल नहीं है कि पूरा पुरुष समाज ही दोषी हो इसके बावजूद पुरुष समाज को इस प्रकार हमेशा ही अपराधी ठहराने के कारण पर जब हम नजर डालते हैं तो हमारे सामने समाज के कुछ ऐसे अद्रश्य ठेकेदारों के चेहरे नजर आते हैं जो भगवान की अनुपम कृति स्त्री व पुरुष के मध्य लकीर खींचकर हर पल अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं. ये हमेशा स्त्री व पुरुष को एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी सिद्द करने पर आमादा रहते हैं जबकि स्त्री पुरुष से किसी भी मायने में आगे या पीछे नहीं बल्कि वह तो पुरुष की पूरक है, सहभागी है. जैसा कि एक सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाँथ होता है ठीक उसी प्रकार एक सफल महिला के पीछे भी किसी ना किसी पुरुष की मेहनत, तपस्या व बलिदान समाहित होता है.
भारतीय संविधान ने स्त्री-पुरुष दोनों को समान रूप से अवसरों की समानता का अधिकार प्रदान किया है. व्यक्तित्व विकास के लिए शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए पिछले दिनों सभी को शिक्षा के अधिकार के लिए विधेयक प्रस्तुत किया गया. इस बात को नकार नहीं सकते कि स्त्री-पुरुष के बीच भेद खत्म करने के ये प्रयास काफी अहमियत रखते है, लेकिन एक कड़ुआ सत्य ये भी है कि इस दिशा में अभी हमें बहुत लंबा सफर तय करना है. एक सच तो ये भी है कि महिलाओं के प्रति बराबरी का नजरिया अपनाने के लिए महिला राजनेताओं ने समाज को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वहीँ प्राचीन काल से ही नूरजहां, रजिया सुल्तान सहित कई महिला प्रशासकों का महिलाओं के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. दोनों के समान अधिकारों को लेकर अगर स्त्री-पुरुष को समान दृष्टि से देखा जाये तो ये बात सोलह आने सच है कि स्त्री पुरुष से कम नहीं. शिक्षा एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से महिलाएं पुरुषों के समकक्ष है, स्त्री-पुरुष के बीच असमानता मिटाने के लिए अभी भी प्रत्येक स्तर पर कठिन प्रयास जरूरी है.
मेरी कशमकश ……..
मेरे दिलो-दिमाग में ये विचार हमेशा उथल-पुथल मचाते रहते हैं कि नारी अपनी मेहनत के बल पर जिस क्षेत्र में उतरी वहां उसने सफलता तो हासिल कर ली लेकिन यह समानता उपलब्धियों की नहीं रह गयी. नारी बराबरी के नाम पर घर-आंगन ,घर के काम,तीज-त्योहारों व रीति-रिवाजों और अस्मिता व निज स्वतंत्रता के नाम पर रिश्ते-नातों से परहेज करने लगी है. देखा जाये तो अपने परिवार के कार्यों को तिलांजलि देकर स्त्री समानता का दंभ भरने लगी है और उधर परिवार एक-एक करके बिखरने लगे हैं. और तो और पुरुष से समानता के नाम पर स्त्रियों का पहनावा बदल गया. नारी पुरुष के बराबर दिखने की अंधी दौड़ में भारत देश की संस्कृति को ठोकर मारकर पीछे छोड़ती जा रही है.
महिलाएं और लड़कियां स्वास्थ्य और आजीविका के लिहाज से हों या शिक्षा पाने के स्तर पर हो वो पुरुषों की बराबरी पर स्वयं को ला चुकी हैं. फिर चाहे वो दुनियां का कोई भी देश हो. सही मायने में अगर आर्थिक रूप से देखें तो सशक्तिकरण के लिहाज से कमाने के अवसर,वर्कफोर्स में भागीदारी, निर्णय लेने की प्रक्रिया और राजनीतिक स्तर पर अब भी स्त्री-पुरुष के बीच भारी अंतर मौजूद है.
एक पहलू ये भी …..
लेकिन स्त्री-पुरुष को एक समान न समझने वालों की बात बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है. ये सत्य है कि आप नैसर्गिक भेद को अप्राकृतिक तरीके से कैसे बदल पाएंगे ? जब स्त्री-पुरुष का विभेद ईश्वर ने पहले ही बना रखा है तो आप कौन होते हैं उसे समान कहने और करने वाले. अरे समान तो व्यक्ति के स्वयं के विचार, एक माता-पिता की एक सी संतान और हाथ की पाँचों अंगुलियां भी एक समान नहीं होंती. तो फिर भला स्त्री-पुरुष कैसे एक समान हो सकते हैं ? इसलिए समाज को अपना नजरिया बदलने की जरूरत है. समाज में स्त्री-पुरुष की समानता को लेकर परिवार के सामंजस्य को बिगाड़ने की रवायतें बहुत ही खतरनाक हैं. समाज और परिवार में नारी के केवल सम्मान की बात होनी चाहिए. क्योंकि स्त्री जगत की वो पवित्र ज्योति है जिसके स्वभाव में त्याग, दया,धर्म, सहनशीलता, प्रेम,छमाँ ही जीवन की धारा है. नारी जन्मदात्री है उसकी रातों को जागने का सफर, ममता ,प्यार ,लाड-दुलार, दुआओं में संवरता बचपन उसका अमृत रूपी दूध पीकर हष्ट-पुष्ट होता है. माँ की वाणी से मुस्कराता ,खिलखिलाता, बोलना और हंसी से हंसना सीखता है. नारी जीवनदायिनी है. इस दुनियां का प्रत्येक व्यक्ति उसकी गोद में पलकर ही समाज में सर उठाकर चलने के काबिल होता है. नारी भावना प्रधान होती है. इन्हीं दिव्य गुणों के कारण हमारे समाज में नारी को “देवी” का दर्जा दिया जाता है.
बहरहाल जो भी हो अगर स्त्री-पुरुष को सामाजिक, पारिवारिक, वैचारिक और आर्थिक विकास के साथ चलना है तो एक-दूसरे को समझ कर चलना ही पड़ेगा. उसके लिए स्त्री-पुरुष को अपने-अपने अहम का त्याग करना होगा.
पुरुष अपने वर्चस्व से और स्त्री अपनी एकरूपी अवधारणा को अपनाते हुये एक दूसरे को दबाकर रखना चाहते है. स्त्री को पुरुष के प्रति अपनी एकरूपी अवधारणाओं को और पुरुष को अपने वर्चस्व को खतम करना होगा. एक दूसरे को छोटा कहने से किसी भी समस्या का हल नहीं होगा.
समाज में अंर्तमन से अपनी क्षमताओं के अनुरूप जीने के साथ-साथ स्त्री और पुरुष के बीच आपसी समझ और आदर हो. मैं यह मानती हूं कि अगर इस संसार की हर स्त्री और हर पुरुष अपनी-अपनी कमियों पर थोड़ा-थोड़ा पुर्नविचार कर लें, तो ये भेद-भाव निश्चित ही मिट सकता है.
इस अहम से बिखरता हुआ दाम्पत्य जीवन …….
देखा जाए तो आज के युग में अपने आपको पुरुष से कम न मानने वाली सुशिक्षित और आधुनिका कहलानें वालीं ऐसी स्त्रियों की पीड़ा बहुत ही मार्मिक है. स्त्री जब प्रकृतिप्रदत्त अपने अमूल्य गुणों को त्यागकर पुरुष की भांति आचरण करने का दिखावा और पुरुष की भॉंति दिखने को ही उच्च वर्ग का समझते हुये उन कार्यों को करती है जो उसकी मर्यादा के खिलाफ हैं तो वो अपने स्वाभाविक स्त्रैण गुण को खोने के साथ-साथ कभी भी पौरुष गुणों को अपनी देह में स्वीकार या अपना नहीं पाती है.इन स्थितियों में स्त्री का अवचेतन न तो सम्पूर्णता से स्त्रैण ही रह पाता है और न हीं पौरुष गुणों को समाहित कर पाता है.नारीत्व के इन गुणों से रिक्त ऐसी स्त्री में विश्‍वास, कोमलता, निष्ठा, प्रतीक्षा, सरलता, नम्रता, उदारता, समर्पण, माधुर्य,सुघड़ता, दयालुता आदि नैसर्गिक गुण धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं. जिस कारण वश से दाम्पत्य सुख का बिखराव शुरू हो जाता है. जो सफल दाम्पत्य के लिये अपरिहार्य होते हैं
विश्वास पर रिश्ते की नींव कायम …….
अब अन्त में इस दूसरे पहलू को देखते हुये ये भी कहना चाहती हूँ. कि आज भी सच्चे पुरुष,सच्ची स्त्री और सच्चा प्यार इस संसार में देखने को मिल जायेगा. देखा जाये तो आज भी पति-पत्नी दाम्पत्य जीवन के रसास्वादन का महत्व समझते हुये दूसरों को समझा सकने योग्य और आज भी बेताब पति-पत्नियों का वजूद एक दूसरे पर जान लुटाने को कायम है.
स्त्री-पुरुष का आपसी सच्चा विश्वास और सद्व्यवहार ही सफल दाम्पत्य का आधार है जो केवल किताबी सिद्धान्त नहीं हैं बल्कि ये बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है यदि स्त्री को सच में ही वास्तविक तृप्ति की सुखानुभूति को महसूस करते हुये स्वप्निल सुख भोगना है, तो दोनों को समान रूप से शक्तिशाली होना पड़ेगा तभी दाम्पत्य जीवन का पंछी स्तन्त्र रूप से अपनी उड़ान भर पायेगा.
अन्तरंग क्षणों में स्त्री अगर सच्चे-नैसर्गिक हृदय से पुरुष के हाथों पराजित होने में सुखानुभूति के सच्चे अहसास को जीती है तो उस समर्पण का भविष्य बहुत ही निर्मल होता है. क्योंकि प्रकृति की सच्चाई भी यही है कि स्त्री बिना पुरुष के अधूरी है और स्त्री बिना हारे, जीत नहीं सकती. ये सारस्वत सत्य है कि स्त्री की सच्ची हार में ही स्त्री की सच्ची और चिरस्थायी जीत का रहस्य छिपा है.जो स्त्री को पूर्ण करता है.
सबसे पहली और अहम बात तो यह समझने की है कि ये सुख पुरुष की नकल करने वाली स्त्रियों को तभी मिल सकता. जब वो स्त्री के सभी स्वाभाविक गुणों को अपने अन्दर वापस पैदा कर लें. जिससे समाज में, परिवार में उसकी अलग पहचान हो. जिससे वो अपने दाम्पत्य जीवन को खुशियों से भर सके.
सुनीता दोहरे ..लखनऊ …

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