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शाही हुक्मरानों अब तो जाग जाओ :—

sach ka aaina
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शाही हुक्मरानों अब तो जाग जाओ :—

तुम्हारी इतने सालों की हुकूमत भी देश के भविष्य को सुरक्षित न कर पाई,
तुम्हारी ढुलमुल नीतियों के चलते देश पर कभी भी मुसीबतों का पहाड़ टूट सकता है.
देश के सभी राज्यों में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों, गैरसरकारी संगठनों , राजनीतिक नेताओं तथा आतंकवादी संगठनों के बीच एक गठबंधन हैं ! इस गठबंधन के तार पंजे की हुकूमत से अछूते नहीं है इस गठबंधन के हावी होने के कारण इन आतंकवादियों के और उनको पनाह देने वाले देशों के खिलाफ निर्णय लेने में कठिनाई होती है ! यही कारण है कि आतंकवादियों-माओवादियों की कारगुजारियां केन्द्र सरकार को चुनौती दे रहीं हैं और केन्द्र सरकार इसे चुपचाप बरदाश्त कर रही है ! इसका खामियाजा केन्द्र सरकार व राज्य सरकार को नहीं बल्कि निर्दोष जनता को भी भुगतना पड़ रहा है ! कुछ वर्षों से भारतीय सामरिक विशेषज्ञ और विश्लेषक इस बात को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं कि चीन ने अपने नापाक इरादों के तहत भारत की घेराबंदी के लिए पाकिस्तान ,श्रीलंका, म्यांमार और नेपाल जैसे जहरीले नगों से जहर भरी अंगूठी में पिरोकर चीन ने सामरिक महत्व के ऐसे अड्डों पर कब्जा कर लिया है जिनको भेदकर बाहर निकल पाना बेहद मुश्किल है !
अंतरराष्ट्रीय मंच पर जब भी कोई बौद्धिक परिचर्चा , कोई शोध या कोई भी रिपोर्ट प्रकाशित होती है तो एशिया के आर्थिक और सामरिक पर्यवेक्षण को लेकर भारत और चीन अक्सर केंद्रीय विषय का हिस्सा होते है ! अधिकांशत: इन चर्चाओं में एक विरोधाभास दिखाई देता है, जिसमें एक ओर तो भारत-चीन मैत्री की बात आती है और वहीँ दूसरी ओर दोनों देश प्रतिस्पर्धी के रूप में नजर आते है ! इन हालातों में अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर सच क्या है ?
विवादपूर्ण अथवा प्रतिद्वंदितायुक्त’ सम्बंध :—
अक्सर देखा गया है कि भारत सामरिक क्षेत्र में सकारात्मक रूप से जब भी आगे बढ़ने का निर्णय लेता है तो चीन प्रत्यक्ष तौर पर या फिर पाकिस्तान को ढाल बनाकर भारत के विरुद्ध विशुद्ध आलोचक की भूमिका में आ जाता है !
अब सोचने की बात ये है कि चीन अगर वास्तव में भारत को अपना मित्र समझता है तो फिर चीन इस प्रकार का रवैया अपनाकर क्या साबित करना चाहता है ? इस बात को सभी जानते है कि पाकिस्तान एशिया में पनपने वाले आतंकवाद का जनक है और पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक अब्दुल कादिर खान ने परमाणु तस्करी में महती भूमिका निभाई है ! सच तो ये है कि चीन आज पाकिस्तान, म्यांमार और नेपाल के रास्ते भारत के खिलाफ गतिविधियों का संचालन कर रहा है ! पाकिस्तान के साथ तिब्बत के रास्ते सड़क संपर्क बनाने के साथ-साथ खाड़ी के मुहाने पर पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में पाकिस्तान के साथ मिलकर संयुक्त नौसैनिक अड्डा विकसित करके भारत के पश्चिमी तट पर खतरा उत्पन्न कर दिया है और भारत की सीमा तक सड़कें बनाकर माओवादियों की जड़े जमाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ! ये सभी गतिविधियां सही अर्थो में दक्षिण एशिया की शांति के लिए बहुत बड़ा खतरा है ! हमें गहन अध्यन से ये पता चलता है कि चीन सचमुच भारत के खिलाफ कार्य करते हुये एक भीषण युद्ध की तैयारी कर रहा है !

धर्म के नाम पर एक छलावा मात्र :—
देखा जाये तो चीन ने भारत के बढ़ते प्रभाव को रोकते हुये , अन्य दक्षिण एशियाई देशों से भारत को दूर करने व नेपाल को आर्थिक सहायता देकर वहां की राजनीति में अपना हस्तक्षेप बढाकर भारत के प्रभाव को कम करते हुये नेपाल में माओवादिओं को बढ़ावा दिया ! इससे नेपाल का भारत के प्रति द्रष्टिकोण बदल गया ! इन सब बातों को देखते हुये कभी- कभी ये महसूस होता है कि “बुद्धं शरणं गच्छामि “ महज एक दिखावा तो नहीं या फिर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भ्रमित करने के लिए एक छलावा तो नहीं ! क्योंकि जब अपने क़ृत्य को जायज ठहराना हो या फिर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से समर्थन हासिल करना हो तो ये तानाशाह सहज ही धर्म का सहारा ले लेते हैं ! और अपने धर्म का प्रचार करने के लिए तो तानाशाहों की यह एक सामान्य प्रवृत्ति रही है चाहे वह जनरल थान श्वे हों या फिर सम्राट अशोक ! सुनने में ऐसा आता है कि सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध में लाखों व्यक्तियों के मारे जाने के बाद युद्ध -विजय की जगह धम्म-विजय का अभियान चलाया था ! लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्यों से ये प्रतीत होता है कि बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बावजूद भी अशोक ने न तो कलिंग का राज्य वापस किया न अपनी सेना विघटित की और न पराजित राजाओं को उनके राज्य वापस लौटाए ! उसने राज्य में पशु-वध निषेध तो किया लेकिन राजकीय रसोई में मांसाहार पकाया जाता रहा ! तो फिर धर्म का प्रचार क्यों ? वैसे तानाशाहों या मदांध व्‍यक्ति को अपराधबोध के झटके महसूस तक नहीं होते क्योंकि वह इसी आत्‍म मुग्‍धता में रहता है कि वह जो सोच और कर रहा है, वही सही है,वही धर्म है !
इस लिए “बुद्धं शरणम् गच्छामि “ शैली की इन यात्राओं से “संघं शरणम् “ होने जैसे किसी चमत्‍कारिक परिवर्तन की उम्‍मीद नहीं की जा सकती !
चीन कई स्तर पर अनुदान और सहायता की आड़ लेकर लुंबिनी में अपनी पहुंच बढ़ाने का प्रयास करता रहता है ! कारण नेपाल के कुछ विशेष तत्व लुंबिनी प्रोजेक्ट की पुरजोर वकालत करते हैं, क्योंकि उनका असली मकसद धार्मिक विकास करना नहीं, बल्कि सड़कमार्ग और रेलमार्ग के जरिये नेपाल में चीन की पहुंच को सुगम बनाना है, जो कि रणनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो भारत के हितों के खिलाफ है
चीन का इरादा नेपाल के साथ अनुदान, व्यापार और निवेश को लेकर आर्थिक संबंध मजबूत करने का नहीं है, बल्कि उसकी नजर नेपाली बाजारों के दोहन से भी कहीं आगे है.
हमें चीन की कारगुजारियों को लेकर बहुत ही सतर्क रहने की जरूरत है जब तक देश की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं होती , देश का एक बड़ा हिस्सा उग्र वामपंथियों की हिंसा की चपेट से बाहर नही आता और सरहद पार से प्रायोजित दहशतगर्दी में कोई कमी नहीं होती तब तक हमें विदेश नीति की जोखिम भरी इन चुनौतियों को अनदेखा नहीं करना है वरना हम चीन के चक्रव्यूह में फंस कर रह जाएंगे ! देश के शाही हुक्मरानों को यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए, देश के लिए उतना ही फायदेमंद होगा !
नेपाल और भारत के बीच की सुरक्षा संधि समझौते के अंतर्गत 1950 के शांति और सहयोग को भी चीन कई मौकों पर चुनौती दे चुका है. खासकर तब, जब चीन से लगे हुये नेपाल के सीमाई क्षेत्र से अपने सैन्य मिशन को हटाने के लिए लिए भारत को मजबूर किया गया. जबकि अर्निको हाइवे के जरिये 1989 और 2005 में चीनी हथियारों का नेपाल में निर्यात किया गया था !
देखा जाये तो इससे भारत और नेपाल की आपसी संबंधों को भी गहरा धक्का पहुंच रहा है. इसलिए ये आवश्यक है कि जनता चीन के इस कृत्य की सच्चाई को जाने और किंकर्तव्यविमूढ़ केन्द्रीय सत्ता को झकझौर कर जगाए, ताकि यह देश बच सके !
ये सब देखते हुये अब भी पंजे की हुकूमत नहीं जागी तो निशान बदल सकता है. देश के भविष्य की चिंता है अगर दोनों देशों के चिंतकों को तो चीन और भारत अपने आर्थिक विकास को लेकर अपनी सांस्कृतिक और सभ्यता के मूल्यों का आदान-प्रदान करे इससे रचनात्मकता और नन्वोन्मेष एक केंद्र के रूप में मुखर हो सकते हैं जिससे दोनों देशों के बीच एक उपयुक्त नया प्रतिमान स्थापित होगा ! और सरहदों के बीच सौहार्द स्थापित होगा !
सुनीता दोहरे …..
लखनऊ ….

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