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पलकों की छाँव :–

sach ka aaina
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पलकों की छाँव :–

अश्रु प्रवाह में डूबी पलकें , आस भरे निहारें पलकें !

पलकों कि पगडण्डी पर , पलक बिछाए बैठी पलकें !!

बंद पलक हों या खुली हों पलकें , देखन को तरसें है पलकें !

प्रेम दिवाकर उदित करने को , मिलन की मांग पुकारे पलकें !!

त्याग दिया इस यौवन तन को , विरह वेदना देखीं पलकें !

शपथ तोड़कर स्वपन है तोडा ,व्याकुल हो गयी विरहन पलकें !!

प्रेम आस दृढ़ करती पलकें , सांझ ढले जलती हैं पलकें !

नित नए ख्वाब सजातीं पलकें ,नीर मैं गोते खाती पलकें !!

छवि सामने आती जब है , मंद-मंद मुस्काती पलकें !

सोचा छवि को कैद कर लूँ , विछोह की तड़फ दिलातीं पलकें !!

प्रेम राग की आहट छेड़ें , नित नई अलख जगाती पलकें !

तन पर डाले सतरंगी चूनर ,इंद्रधनुष दिखलाती पलकें !!

राह तके दिन रैन ये पलकें , पत्थर सी पथराई पलकें !

कदम चूमने को आतुर हैं , हो गयीं उन्मत्त मन पागल पलकें !!

दबे पाँव लिए प्रेम चिराग , रूह बिछोड़ा सह गयी पलकें !

सांझ ढले मन आतुर होता , ह्रदय की ताप बढ़ाती पलकें !!
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…..सुनीता दोहरे

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