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भ्रष्टाचार का फैलता हुआ जहर —(सच का आईना )

sach ka aaina
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भ्रष्टाचार का फैलता हुआ जहर —(सच का आईना )
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भ्रष्टाचार एक ऐसा बीज है जो हमारे देश में बिच्छू घास की तरह अपनी पैठ जमा चुका है जिसको लोग जिगासा वश छूकर देखते हैं और इसके जहर का आनंद लेते हैं बिच्छू घास के काटे का इलाज भी घास के पास उगी घास से होता है ठीक उसी तरह रिश्वत लेने वाले के साथ उसके ऊपर बैठा अधिकारी खेल खेलता है उसके पास भी इसका हर तोड़ होता है !

भ्रष्टाचार की जड़े हमारे पूरे भारत देश में फ़ैल चुकी हैं आये दिन इनके अंकुर फूट-फूट कर भोली-भाली जनता को चूसते हैं ! देखने की बात तो ये है कि भ्रष्टाचार का बीज अंकुरित होकर अपनी कोपलों से उड़ान भरकर कैसे समाज को जकड़े हुये है ! आइये थोड़ा विस्तार से चर्चा करती हूँ ……………..
अगर भ्रष्टाचार की बात की जाये तो दो प्रश्न प्रमुखता से हमारे सामने उभर के आते हैं ! सबसे पहले तो ये कि भ्रष्टाचार का श्रोत कहाँ से फूटा है और क्या कारण हैं भ्रष्टाचार के !
सबसे अहम और दूसरा मुख्य प्रश्न है कि इसका निवारण कैसे हो !
नैतिकता का पतन ही मुख्य रूप से इसका पहला श्रोत होता है
, आचरण का भ्रष्ट हो जाना ही भ्रष्टाचार है ! आचरण का प्रतिनिधित्व सदैव नैतिकता करती है ! नैतिकता के बल पर ही मनुष्य अपने आचरण को संयमित करता है ! किसी  भी मनुष्य का नैतिक उत्थान अथवा पतन उसके आचरण पर गहरा प्रभाव डालता है ! आधुनिक शिक्षा पद्धति और आज के सामाजिक परिवेश मे बच्चों के नैतिक उत्थान के प्रति माता- पिता की लापरवाही बच्चे के पूरे जीवन को प्रभावित करती है ! उदाहरण के तौर पर अगर बच्चा पांच रूपये लेकर बाज़ार जाता है ! उन पांच रुपयों से अगर एक रुपया बचता है तो माता- पिता इसे छोटी बात समझ कर अनदेखा कर देते हैं और इसी लापरवाही के कारण, बच्चा उस एक रूपये को छुपा लेता है ! धीरे धीरे यह आदत बच्चे को आदी बना देती है और इसी स्तर पर भ्रष्टाचार की पहली सीढ़ी शुरू होती है !
देखा जाये तो जीवन की पहली सीढ़ी पर ही उसे नैतिकता का पाठ , उचित मार्गदर्शन, और औचित्य अनौचित्य मे भेद करने का ज्ञान उसके पास नहीं होता इस तरह उसका आचरण धीरे-धीरे उसकी आदत मे बदलता जाता है ! जब बच्चा परिपक्व होता है तो फिर वो इसी लालसा में भ्रष्टाचार जैसा घिनौना कार्य करता है !
अतः इससे ये स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार का पहला श्रोत उसका परिवार होता है जहां रहकर बालक नैतिक ज्ञान के अभाव मे उचित और अनुचित के बीच का भेद समझने में तथा नैतिकता के प्रति मानसिक रूप से सबल होने मे असमर्थ हो जाता है !…..

कई बार व्यक्ति की कुछ परिस्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं जब व्यक्ति को दबाव वश भ्रष्टाचार जैसा घिनौना कार्य करना और सहन करना पड़ता है ! देखने में आता है कि इस तरह का भ्रष्टाचार सरकारी विभागों मे बहुतायत मात्रा में होता है ! व्यक्ति चाह कर भी नैतिकता के रास्ते पर चल नहीं पाता क्योंकि अधिकार सीमित और प्रक्रिया जटिल होने के कारण व्यक्ति भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठा नहीं पाता !……..
बहुत तेज़ी से हो रहे विकास और बदल रहे सामाजिक परिदृश्य ने लोगों मे ऐसी महत्वाकांक्षाएं पैदा कर दी हैं जिनकी पूर्ति करने के लिए वो अपने वर्तमान आर्थिक ढांचे मे रह कर स्वयं को असहाय पाते हैं ! सुख सुविधा के साधन बढ़ने से महत्वाकांक्षाएं भी बढ़ी हैं ! नैतिक मार्ग पर चलकर इन सुख सुविधाओं को पाना लगभग असंभव हो जाता है ! ऐसे मे भ्रष्टाचार के द्वारा लोग अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति करके समाज के लोगों को भी प्रेरित करते हैं !………..
भ्रष्टाचार का एक प्रमुख कारण प्रभावी कानून की कमी अथवा उनके क्रियान्वयन के लिए सरकारी मशीनरी का ठीक प्रबन्धन नहीं होता ! सिस्टम मे तमाम ऐसी खामियाँ होती हैं जिनके सहारे भ्रष्टाचारी को दण्ड दिलाना बेहद कठिन हो जाता है !
…………
देखा जाए तो पिछले कुछ दशकों से पूरे भारत मे आर्थिक असमानता तेज़ी से गति पकड़ चुकी है ! अमीर लगातार और ज़्यादा अमीर हो रहे हैं ! जबकि गरीब अपनी जीविका के लिए निरंतर संघर्ष करके बामुश्किल जीवन यापन कर पा रहा है !
जब व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकताएँ सदाचार के रास्ते पूरी नहीं होतीं तो वह नैतिकता पर से अपना विश्वास खोने लगता है और जीवित रहने के लिए अनैतिक कार्य करने को बाध्य हो जाता है !

अब अगर इसका निवारण हो तो कैसे हो ! हमारे समाज में कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए पुलिस और क़ानून बनाये गये हैं ! पुलिस, फायर सर्विस जैसी सरकारी सहायता के लिए एक यूनिक नंबर होता है जिसके मिलाते ही वह सुविधा आम लोगों को मिलती है ! लेकिन यदि कोई रिश्वत मांगता है अथवा भ्रष्टाचार करता है तो ऐसी कोई सीधी व्यवस्था नहीं दिखती है जो कि एक फोन करते ही भ्रष्टाचार निरोधी दस्ता आकर पीड़ित की सहायता करते हुये भ्रष्ट के खिलाफ कार्यवाही करे ! कड़ा कानून बनाए जाने से भ्रष्टाचार पर मात्र तात्कालिक और सीमित नियंत्रण ही प्राप्त किया जा सकता है ! पर पूरी तरह से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं किया जा सकता है ! क्योंकि सत्य के साथ जीना सहज और सरल नहीं होता, भ्रष्टाचार से मुक्ति पाने के लिए कठोर आंत्म नियंत्रण त्याग और आत्मबल की आवश्यकता होती है !

समाज के आर्थिक रूप से निचले स्तर पर आजीविका के लिए संघर्षशील किसी भी व्यक्ति के लिए नैतिकता और ईमानदारी अपना मूल्य खो देती है !और सामाजिक स्तर पर कुंठा को जन्म देती है !

भ्रष्टाचार हमारे भारत देश को पूरी तरह से अपने पंजे में जकड़ चुका है ! ये एक कटु सत्य है कि एक स्तर से अधिक आर्थिक और सामाजिक असमानता ने क्रांतियों को जन्म दिया है ! इस कारण हमारे देश की सरकार का प्रभावी प्रयास ये होना चाहिए कि आर्थिक असमानता एक सीमा मे ही रहे !
अगर देखा जाये तो बहुत सी महान सभ्यताओं के पतन का मुख्य कारण भ्रष्टाचार ही रहा है !
भ्रष्टाचार, विकास व सुशासन का शत्रु होने के साथ –साथगरीबों के हक को छीनता है, संसाधन आवंटन को विकृत करता है,लोगों के विश्वास को खत्म करते हुये नियमों की अनदेखी करता है !देश की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है इससे आतंकवाद, अराजकता, जंगलराज की स्थिति निर्मित होती है !लोगों के मन में निराशा के जन्म के साथ ही उनकी काम करने की उर्जा मारी जाती है ! लोग नये कार्य हाथ में लेने से डरते हैं जिससे देश के हित में किये जाने वाले कार्यों में बाधा आती है !
भ्रष्टाचार से सृजनात्मकता मारी जाती है !
क्योंकि अयोग्य ,निकम्मी तथा भ्रष्ट सरकारें जनता को योजनापूर्वक भ्रष्ट बनाकर अपना शासन बचाये रख पाती हैं इसे ‘भ्रष्ट बनाओ और राज करो’ का फार्मूला अपनाती हैं !

सुनीता दोहरे ..

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