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कब तक रोयेगा बुंदेलखंड – सुनीता दोहरे

sach ka aaina
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कब तक रोयेगा बुंदेलखंड – सुनीता दोहरे

पृथ्क राज्य की जिद है हमारी, सियासत से जिद का कोई संबंध नहीं

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बुंदेलखंड किसी परिचय का मोहताज नहीं है । मगर इसके बावजूद अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। क्यों ? किसके पास है इस सवाल का जवाब ? सत्तापक्ष या विपक्ष के पास ? या आप और हम के पास ? सवाल दर सवाल इसलिए क्यों कि 914 इसवी से अस्तित्व में आया बुंदेलखंड । अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है । पांच करोड़ की अबादी और 70 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र वाला बुंदेलखंड । अंग्रेजी हुकूमत के दौरान तो अलग प्रदेश था । मगर आजादी के बाद से कभी एक में तो कभी दूसरी चक्की में पिस रहा है । क्यों ?  जाहिरातौर पर इस्तेममाल करो और फैंक दो की नीति ने इस ऐतिहासिक खंड को तहस-नहस कर दिया है । राजनीतिज्ञों ने बुंदेलखंड पर बयानबाजी के तो कई कीर्तिमान स्थापित किए । मगर महिलाओं के लिए दुनिया में मिसाल बन चुके बुंदेलखंड के लिए किया कुछ नहीं । यहां के लोगों को छोड़ दिया उनकी किस्मत के सहारे । नीयति को अगर ये मंजूर होता तो बात अलग थी । इंसानों की गलतियों का दोष नीयति पर तो मढ़ा नहीं जा सकता ।

आज अनेक सवाल हैं परन्तु हम सबके लिए सबसे महत्वपूर्ण और अति संवेदन शील प्रश्न ये है कि प्रथक बुन्देलखण्ड की मांग पर केन्द्र व राज्य सरकारें ईमानदारी व गंभीरता से विचार करेंगी ! इसलिए वक्त है बुंदेलखंड के लिए लड़ने का । बुन्देलखण्ड की जनता के लिए आंदोलन या क्रान्ति कोई नए या डराने वाले शब्द नहीं हैं यहाँ की तो बेटियों के रणकौशल को भी इतिहास सलाम करता है एक बात केन्द्र व राज्य सरकारें भली भाँती समझ लें कि यहाँ की जनता भोली भाली जरुर है लेकिन उनेह बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता ! प्रथक राज्य निर्माण की मांग को लेकर आज तक कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ इसकी मूल वजह है कि बुन्देलखण्ड को वोट बैंक के रूप में देखा और चुनाव में ही इस मांग को हवा दी है ! चुनाव जीतने वाला तो भूल ही जाता है लेकिन हारने वाला भी अगले चुनाव तक इस मुद्दे पर बात करना अपना समय खराब करना समझता है ! जब कि ऐसा नही है , चिंगारी बुझी नहीं बल्कि कुछ क्रांतिकारी भाई इस आग को बराबर हवा देते चले आ रहे हैं ! इसी क्रम में वीरांगना बुन्देलखण्ड रेजीमेंट की उत्त्पत्ति भी ऐसी ही सोच का जीवंत उदहारण है !

बुंदेलखंड की लड़ाई अब महिलाएं ठीक उसी तरह लड़ेगी । जिस तरह झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने फिरंगियों के खिलाफ लड़ी थी । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हवन संस्था ने मर्दानी लक्ष्मीबाई  की भूमि पर मुझे वीरांगनाएं पैदा करने का जिम्मा सौंपा है । हवन गैर राजनीतिक संस्था है । क्षेत्र और देश के लोग इससे भलिभांति परिचित है । यहां तक मेरी निजी बात है तो मैं साहित्यकार हूं । साहित्यकार अमूमन राजनीति से दूर रहता है । ये सभी जानते है । साहित्य से जुड़ी हूं महिलाओं का दर्द समझती हूं । महिलाओं को जागृत करके एक ताकतवर कमेंटी का गठन करुँगी ! बुंदेलखंड की लड़ाई लड़ने के लिए मैंने क्षेत्र के चप्पे-चप्पे से संपर्क साधा । लोगों की तकलीफों से रु-ब-रु हुई । हर घर में क्या है । भलिभांति जाना । सरकारों के सामने लाने से शायद जख्मों पर मरहम न लगे । इसलिए सीधे लड़ने का फैसला किया है । आह्वान है महिलाओं से कि वे आगे आएं । और झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का अनुसरण करे !

पृथ्क बुंदेलखंड अवश्य अस्तित्व में आयेगा । क्योंकि ये हमारी जिद है । जिद है विकास की । जिद है बुंदेलखंडियो के दुख-दर्द दूर करने की । इसमें सभी के सहयोग की जरुरत है । तभी कोशिश कामयाब होगी । और तभी एक स्वक्छ और खुशहाल राज्य का निर्माण होगा !

पुनः आभार के साथ !

भवदीय

सुनीता दोहरे

केन्द्रीय प्रमुख्य

वीरांगना बुन्देलखण्ड रेजीमेंट

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