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प्यार की तपिश का एहसास
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जिन्दगी की तपिश में
तुम आये थे छाँव बनकर
जब भी खोली थी आँखें
तुम मुस्कराए थे शमां बनकर
जब भी तेरा नाम लिया
अपने पहलू में पाया था तुझे
अब क्यों है ये रूठी-रूठी सी जिन्दगी
गुमसुम सी बेबजह है ये जिन्दगी ,
ना जाने कितनी शाम तूने रुलाया है मुझे
जिन्दगी की राह पर जब भी कांटे थे चुभे
अपनी हथेलियों को बिछाया था तूने !
एक पल में क्यों ये , सागर गहरा हो गया
यादों के गर्माहट की एक सोच हमें दे गया
बीते कल की बात है जब सामने तू आया था
वो हनुमान जी का मंदिर और उनका साया था
वो उनके चरणों से सिन्दूर छुपा कर लाना तेरा
दिल सदके में झुक गया था
जाने क्यों मगरूर मेरा दिल हो गया था
हाँथ में सिन्दूर और तू हौले से मुस्कराया था
अचानक ये दुनियां रंगीन हो गई थी
एक मूक भाषा हसीन हो गई थी
ना कुछ बचा है ना कुछ रुका है
बार-बार दस्तक देती है क्यों ये मधुर याद
ले गया तू जिन्दगी के वो हसीन पल
हमें खबर थी कि तू बेबफा है मेरे हमदम
मैं तुझे पूजती रही हर घडी
कि तू फितरत तो बदलेगा कभी
ये दोस्त मुझे यकीं तो नहीं
मगर सच भी यही है
कि मैं तेरे लिए खुद को भी हार सकती हूँ
आ जा कि अब बहुत मुश्किल है
खुद को संभाले रखना
तेरी बोलती नजरें कहती थीं
कि जान् अपना ख्याल रखना
अब हम जी तो लेंगे
तेरे दिए गुलों के सहारे
बस गम इतना है कि
इतना कुछ होने के बाद भी
तुम ना हुये हमारे …………सुनीता दोहरे ……
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