sach ka aaina
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मैंने तुम्हें माँफ किया
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जब एहसास हो भूल का तो
तुम मुझे आवाज देना
सारे गुनाह मांफ कर मैं लौट आउंगी…..
तेरी मूक सांत्वना की छाया में
प्रभात की पंखुरियों को संवार लूंगी
विरह के वो अनमोल पल
तेरे प्रेम से निखार लूंगी
सत्य की हो तुमेह जिस दिन पहचान
तो तुम मुझे आवाज देना
सारे गुनाह माफ कर में लौट आउंगी……..
इन्द्रधनुषी रंग लिए
भाव सुरभित हृदय के स्पंदन में
दुर्गम अन्जान राहों पर
चल पड़े थे गर कभी
सपनों के भाव से सदभाव से
तन्हाइयां चुभने लगे
तो तुम मुझे पुकार लेना
सारे गुनाह मांफ कर मैं लौट आउंगी……….
जीवन की अनबूझ पहेली
उलझी मगर सुलझी नहीं
रिश्तों की गहराई को
अथाह समुन्दर की बैचेनी को
पहचान जाओ तो कभी
तुम मुझे आवाज देना
सारे गुनाह माफ कर में लौट आउंगी …………….
सुनीता दोहरे ….
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