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मेरी मोहब्बत की जंग

sach ka aaina
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मेरी मोहब्बत की जंग
oooooooooooooooo
तू मेरी इबादत को काश समझ पाता !
तेरी रुसवाई ने मुझे गम और खुशी कि
एक ऐसी मिसाल दी है ! जो मेरी आत्मा में
एक दर्द का अलख जगा कर मुझे मेरे होने का एहसास कराती है !
तेरे आँगन में एक डोली आकार उतरती है,
में मूक,अवाक सी स्तब्ध रह जाती हू !
जिंदगी को न समझने का हल ढूंढती रहती हूँ !
जिंदगी अनवरत सी चलने लगती है !
पीड़ा की शाम ढले न ढले पर जिंदगी की शाम ढलने लगी है !
तेरी सोच ,तेरी याद .तेरी इबादत मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गई है !
यूँ ही दिन रात ढल रहे है ! आज वैसी ही चाँदनी रात है,
जैसी तेरे आंगन में हुआ करती थी !
जहाँ हम घंटों बैठकर बातें किया करते थे !
पर उस दिन बहुत कुछ जुदा था,
तेरे गैर होते ही मेरा
सब कुछ खतम हो जाना
तेरे गैर होते ही में निकल आई थी ! तेरे दर से,
मै भटकती रही वीरांन गलियों में
एक अन्जान राह चुनी थी मेंनें,
जिसका कोई अन्त नहीं था !
राह पे चलते-चलते बहुत दूर,
पहाणों की ओट में निकल आई थी मैं
रात का पहला पहर और मेरी मुन्तजिर आँखें
तेरा अब भी इन्तजार कर रहीं थीं !
ठंडी-ठंडी बयार चल रही थी,
वादियाँ मुझे अपने आगोश में लेने को तैयार थीं !
सोचा था आज सब पीछे छोडकर,
अपनी आत्मा में विलीन हो जाऊँगी !
अचानक इस चाँदनी में एक साया उभर के आया
हवायें महक उठीं ,वो बोला क्या तू
मोहब्बत की तलाश में,अपना वजूद मिटाने आई है ?
मेंने सिर हिलाया कहा हाँ,
मेंने सुना, उसके शब्दों को, उसके शब्द,
मेरे दिल को,लहूलुहान कर गये,
वो बोला–तेरी बफा-ए-मोहब्बत क्या है ?
तू देख मेंने तो उसकी डोली को कांधा दिया,
फिर में जी रहा हूँ ! इतना कहकर
वो साया कहीं दूर रात के सन्नाटे में विलीन हो गया !
मेरी आत्मा चीख कर बोली ये कोई फरिश्ता है !
जिसने मेरी रूह को झकझोर दिया था !
मुझे कोई शब्द सूझ नहीं रहे थे !
में मूक अवाक् सी खड़ी रही !
दूर कहीं से फिर कोई आवाज सुनाई दी,
प्यार कर, त्याग कर,बलिदान की मूर्ति बन,
जिस तरह मेरे होंठों पर नाम है ! मेरे श्याम का, मेरे कान्हा का,
मेरा दिल चीत्कार उठा, कि हे राधे कैसे बिताये,
तुमने अपने दिन रैन,
मेरे दिल ने कहा राधा ! प्रेम की देवी राधा !
तुम्हारे इस बलिदान को कोई नहीं भूल सकता !
भोर दस्तक देने वाली थी,
कहीं दूर मंदिर में घंटियाँ बज रही थीं,
एक साया मेरी तरफ बढ़ा चला आ रहा था !
वो बोला किस के लिए जांन दे रही है,
अरे मरना है ! तो देश के लिये मर, देश से प्रेम कर,
मातृभूमि के प्रति सम्मान रख, देश प्रेम का, ये जज्बा
तेरे दिल में एक ऐसी अलख जगायेगा,
तू सब कुछ भूल जायेगी, में सिहर उठी
वो साया तूफान की तरह आया !
और हवा में विलीन हो गया !
मेंने देखा की वो शहीद भगत सिंह थे,
जिनके शब्दों ने मेरी आत्मा को हिला दिया था !
मैंने उस दिन प्रण किया ,की मैं देश की सेवा करुँगी !
और उसी में जीवन गुजार दूंगी !
दूर कहीं से एक मीठी आवाज सुनाई दी ,
की हे बालिके तुझे क्या चाहिए !
जिसकी तुझे तलाश है वो तो तेरे सामने है !
“मां” शब्द अपने आप में एक अजीब सी अनुभूति देनेवाला है !
मैं प्रयन्त कर रही हूं कि जिन्हें ‘मां’ का प्यार चाहिए,उन्हें वह प्यार दूं !
तुम भी इस दुनियां के हर प्राणी को माँ का प्यार दो ,दीन दुखियों की सेवा करो !
मेरा दिल खुशी से कह उठा की मदर टेरसा……
इस दुनिया की सबसे सुन्दर विचारों को देने वाली मेरी माँ !
माँ मदर टेरसा ….आप आज भी मेरे ख्यालों में मेरे दिल में जीवित हो !
सुबह की पौ फटते ही,एक साया मेरे सर पर
प्यार से हाथ सहला रहा था ! उनके सहलाने का
अहसास, बड़ा सुखद था ! मन आत्म विभोर हो गया !
वो बोले मोहब्बत की तलाश है ना तुझे,
तेरी तलाश यकीनन् पूरी होगी,
गरीबों की सेवा कर, भूखों को खाना खिला,
पशु-पक्षियों से प्रेम कर, सबका मालिक एक है
कहकर विलीन हो गये, में मन्त्रमुग्ध सी उन्हें निहारती रही !
मेरी दिल से आवाज आई मेरे सांई बाबा,
आँखों से अविरल धारा बह निकली,
मुझे जीने का मकसद मिल गया था
भोर का उजियारा मेरे जीवन में
एक नया उजाला लेकर आया था,
एक नयी सुबह, बेताब थी,
जिन्दगी की कड़ुवाहट को हरने के लिये !
मुझे आज सच्चे प्रेम का ज्ञान हुआ था !
में चल पड़ी थी ! उस डगर पर, जहाँ मेरी मंजिल थी,
में आज भी उन बताये रास्तों पर चल रही हूँ ! जो मुझे
इन महान हस्तियों के ज्ञान से प्राप्त हुये थे,….सुनीता दोहरे….

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