Menu
blogid : 12009 postid : 14

हृदय में तुम

sach ka aaina
sach ka aaina
  • 221 Posts
  • 935 Comments

हृदय में मेरे तुम,
सदा जीवित रहोगे
मर्यादा और रिश्तों का
का कैसा ये बंधन है !
तुझे चाहने की इक तरफा ललक,
मन को बोझिल कर देती है !
जानती तो हूँ इस जीवन में,
तेरा किसी और से गठबंधन है !
हृदय के मौन शब्दों को,
तुमसे न कह पाये,
तुझे कहीं खो न दूँ,
इस डर से उम्मीदें बिखरती रहीं,
हृदय में एक भूली सी याद उभरती है !
जैसे चातक प्यास के लिए ,
स्वाति की बूंद को तरसता है !
समाज के बनाये नियम मेरे मन के,
आवेग पर एक रोक लगा देते हैं !
जिन्दगी चल रही है उसी अनवरत दिशा में,
जैसी एक पुरानी खंडहर इमारत हो !
गिरने के कगार पर खड़ी हो,
मै बरबस उसे पकड़े खड़ी हूँ !
ना जाने कब जिन्दगी की शाम हो जाये !
और तुझसे कुछ न कह पाने की चाह,हवा में विलीन हो जाये !
में न रहूँ,मेरा वजूद न रहे, पर क्यों ? क्या तेरे बिना !
पर एक अरसे बाद जीने का अहसास हो रहा है !
पर क्या करूँ इस मंहगाई में, कफन भी तो मंहगा हो रहा है !
हृदय टूटा है,फटेहाल जिन्दगी है,
मैं ढूढ़ रही हूँ हर पल अपना वजूद !
ना जाने किस मोड़ पर खड़ी हूँ शाम-ए-गम ढलती नहीं !
सब तकदीर का खेल है,पतवार अब चलती नहीं……….SUNITA DOHARE…..

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply