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सदमे में मोहब्बत

sach ka aaina
sach ka aaina
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सदमे में मोहब्बत थी,
उनके इऩ्कार करने का ,
कोई तसव्वुर न था !
जर्रे- जर्रे में मेरी मोहब्बत ,
की खुशियों का सैलाब था !
शहर-शहर,गली-गली
जो चर्चा आम थी
वो हंसीं तेरी-मेरी दास्तान थी
शाम की तन्हाई में होते थे गिले-शिकवे
जो तेरी फुरकत के सदमे कम होते,
तो हम भी तेरी महफिल की जांन होते
इस शिकारी मोहब्बत ने,
तजुरबातो-हवादिस की शक्ल में,
जो कुछ मुझे दिया है !
लौटा रही हूँ में,
ये खुली धूप तेरी आग से,
बहुत दूर जा रही हूँ में,
फिर मुहब्बत की पुरसिश
न होगी तेरे दीवान खाने में
फिर रोएगी वफ़ा सिसकियां ले-ले
के मेरे जाने के बाद
सज़ा ज़िन्दगी को न बना देना
हौसला देना उसे ये मेरे ख़ुदा
मेरे जाने के बाद ….sunita dohare… —

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