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भुक्कड़ “ पति ” जी

sach ka aaina
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भुक्कड़ “ पति ” जी
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सुबह होते ही ( पति )जी को भूख लगी,
फ्रिज की सारी जमां पूंजी चट करदी
फिर भी भूख ना मिटी,
तो भूख से बेहाल होकर ,
पहुँच गये पत्नी के पास
बोले मैंने रोटी नहीं चुराई,
पानी पीकर प्यास बुझायी,
बार-बार यही टेर लगाई
पत्नी को गुस्सा आया,
एक दिन का खाना गोल कराया,
कवि जी घबराये,
खाना बिना चैन ना आये
पत्नी जी-पत्नी जी, आकर बैठो मेरे पास,
मेरी भी सुन लो सरकार,
मैं एक भुक्कड़ शंहशाह हूँ,
तुम हो मेरी तानाशाह,
पर मैं तुम्हारा सेवक हूँ,
तुमसे पाता प्यार हूँ
मैं भूख की धार पर खड़ा हूँ,
कुछ मिले खाने को इसी आस में पड़ा हूँ
मैं टूटने वाला नहीं हूँ,
पर कच्चा घड़ा हूँ,
भूख की देहरी पर आँते सिकुड़ गई
पत्नी जी विफर गईं,
सब कुछ खा गये
चौबीस घन्टे खाना भरते,
हम बना-बना कर थकते
हो गये हो मोटे, तोंदियल भारी भरकम,
है भूख तुम्हारी लम्बी चौड़ी,
सौ जनों का खाना खाते,
इस चक्कर में हम सब भूखे रह जाते,
10 आइस्क्रीस ब्रिक में काम न चलता,
सौ से नीचे सांस न लेते,
फिर भी यही हो कहते,
मरी इस डायटिंग के चक्कर में
पेट ना मेरा भरता,
बस जीभ हिलाने भर का खाना देती,
मुझे भूख ना लगे तो,
भूखोत्चार का मंत्रोच्चार है करती,
बार-बार उठती-बैठती
पर एक बार खाना ना देती,
पेट को भरने का कब होयेगा उपचार
असहनीय है भूख मेरी ,
भूख ने मुझको बहुत है तोड़ा,
खाने की माया से जोड़ा,
क्यों मौन खड़ी हो प्रिया प्रियम्बदा,
प्यार पुलक से आँखें खोलो,
भूख में डूबी सांसे ,अब कुछ तो बोलो,
क्या ऐसे ही जीना है,
बिना भोग के रहना है,
रसगुल्ले को खाये बरसों बीते,
रसमलाई मुझे देख के तरसे
बिना सहारा बैठ ना सकता,
भूखे पेट में रह न सकता
हे मेरी प्राण-प्रिया,
आंतरिक आहल्लाद से उत्फुल्ल,
राग- रंजित मंद मुस्कराते तेरे अधर,
मैं भूख से हारकर कुंठित कुपित हूँ,
तेरे कोपभाजन में, मैं कैद हूँ
,दे दे दो रोटी बस इसका इच्छुक हूँ,………….

सुनीता दोहरे

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