Menu
blogid : 12009 postid : 15

जीवन-दर्शन में आत्म-तत्व का महत्व

sach ka aaina
sach ka aaina
  • 221 Posts
  • 935 Comments

दोस्तों मेरे एक दोस्त ने मुझसे पूछा था ! कि जीवन-दर्शन में आत्म-तत्व क्या महत्व है ? मैं समझ रही थी कि मेरे ज्ञान की गहराई मापी जा रही है मुझे बुरा भी नहीं लगा ! क्योंकि उसने ऐसे विषय पर जानकारी चाही जिसकी मुझे भी जरूरत थी ! तो जो मेरी समझ में आया मैंने अपने विचार रख दिये अब आप लोग भी अपने विचार बताये ! oooooooooooooooooooooooooooooooooooooooo

मनुष्य ही क्या प्राणिमात्र के जीवन की सफलता उसके कर्मो पर निर्भर है !, मनुष्य के संकल्प, साहस, ज्ञान तथा कर्म, मनुष्य के आचरण पर निर्भर करते हैं !
आत्म-तत्व क्या है, जब तक व्यक्ति अपने आपको जाने ना, तब तक उसे अपनी क्षमता का आभास नहीं हो सकता ! जो व्यक्ति स्वयं की शक्तियों को पहचान लेता है, उसे जीवन-दर्शन के तत्व का ज्ञान हो जाता है, जिसको आत्म-तत्व भी कहते हैं ! मन के अधीन ज्ञानेंद्रियां होती हैं, और मन, बुद्धि के ! बुद्धि का आत्मा से संबंध होता है ! जो बुद्धि को संयमित रहने के लिए प्रेरित करती है ! ये आत्मा ही परमात्मा का अंश होती है ! आत्मा का विकास होने पर वह महान-आत्मा– मतलब [ महात्मा ] बन जाता है ! और महान से ऊपर उठने पर वह परम ( परमात्मा ) में विलीन हो जाती है ! शास्त्रों के अनुसार– बुद्ध, महावीर स्वामी, कृष्ण, राम आदि, मानव शिशु के रूप में इस धरती पर जन्म लेकर बालक की भांति माँ की गोद में खेलकर ,अपनी आत्मा को विकसित कर महात्मा और परमात्मा तक हो गए ! जीवन- दर्शन का मूल तत्व कर्मो से विमुख होकर तपस्या करने को नहीं कहता,बल्कि अपने कर्तव्य-पालन को ही सर्वोपरि मानता है ! आत्मा ईश्वर का अंश है,सर्वशक्तिमान है, और ईश्वर सर्वशक्तिमान है, सबके शरीर के अंदर विद्यमान है, तो उसका अंश, जीव शक्ति संपन्न क्यों न होगा ! सच्चाई तो ये है ! कि ईश्वर किसी को सबल या निर्बल होने का वरदान नहीं देता ! उसके लिए सभी एक समान हैं ! ईश्वर ने सभी को अपना अंश ( आत्मा ) दी है, जो स्वत: शक्ति संपन्न है !

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply