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खुली आँख के सपने

sach ka aaina
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खुली आँख के सपने
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मैं बिना पंख के उड़ जाऊँ,
खुली आँख से सपने देखूं,
आंसमा को छू लूं,
तारों को गिन लूं,
चाँद को निहार लूं,
इस मुडेंर से उस मुडेंर चहक लूं,
कोयल सी गा लूं,
मैं बिना पंख के उड़ जाऊं,
धरती सी महान बन जाऊं,
सागर को समेट लूं,
पाप सारे मांफ कर दूं,
पुण्य को निहार लूं,
इंसान के ईमान को संवार दूं,
दीप बन के रौशनी बनूं,
अंधेरों को सुला दूं,
बाती सी जल के रौशनीं बिखरा दूं !
मैं समुन्दर बन के लहरों सी उछाल लूं,
काश मैं कवि बनूं,
मोती से लिख कर बिखेर दूं,
शब्दों के प्रहार से, भावनाओं की बौछार करूं,
काश मैं पुष्प बनूं,शहीदों पर चढ़ूं !
काश मैं परी बनूं, दूर-दूर तक उढ़ूं,
गरीबी को खत्म करूं ,…………….sunita dohare……

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