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अपनों से ही जूझ रहा,अपना-अपना रक्त !!

sach ka aaina
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दोहे
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जर, धरनी की चाह में, लघु किया जमीर !
हैवानों से लग रहे ,मुझको कई अमीर !!
इस कलयुग में ऐसा कभी, करना मत आराध्य !
डोर किसी के हाथ मे, फिरक किसी के हाथ !!
मनुज मन की चाह के, होते कितने रूप !
हुआ न संभव आज तक,गिनना रूप प्ररूप !!
आसक्ति हो सकती सुखद,अद्भभुत पुष्प समान !
हो यदि उसमें स्नेह,अनुरक्ति,करूणा,प्रेम प्रधान !!
मेरा मन महुआ करे,उठते रोज सवाल !

मन वेदना प्रकट हुई, दी दोहों की सौगात !!

कठिन है इस संसार में,पावन मन का प्यार !

है कौन दूसरा दे सका ,माँ जैसा निश्चल प्यार !!

नारी मन करुणा भरा,बनी कभी अंगार !

कभी दया कभी वेदना ,और करे श्रंगार !!

संवेदना दया ,छमाँ ,पावन प्यार दुलार !

ऐ जननी के हर्दय में , होते हैं  साकार !!

अनबूझ पहेली जिंदगी ,जैसे गणित किताब !

हल न हो मौत का ,गहरा एक हिसाब  !!

मानव मन के रिश्ते ,हैं कितने मजबूर !

प्राणों से प्रिय लग रहे ,अब कितने मजबूर !!

बिक गए  बाजार में, भूतकाल सम्बन्ध !

मनुज ठगा सा रह गया,देख नए अनुबंध !!

दलदल में है डूब गए ,सब के सब इस वक्त !

अपनों से ही जूझ रहा,अपना-अपना रक्त !!….सुनीता दोहरे ….



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